Wednesday, October 7, 2009

सागरिका,स्वपन, सुदीप और गौतम CNN-IBN पर आज १० बजे

हाल ही में मैंने यह शो दखी और मुझसे अपने आप को रोका न गया। अर्सों से हिन्दी में लिखने की तमन्ना शायद आज अंग्रेज़ी टाईपराइटर पर पूरी हो रही है।

नक्षल्वाद शब्द मुझे हमेशा सताया करता था की आख़िर यह क्या बला है , और कई दिनों से यह बात मुझे परेशां करती रही। बचपन में केरल शास्त्र साहित्य परिषद् से जुड़े रहने के नाते कुछ धुंदली यादें अब भी बाकी हैं। सभी को जोड़ कर पेश-ऐ-खिदमत है ।

द्वित्य विश्व युद्घ में ज़ाहिर सी बात है की दो शक्तियों के बिच युद्घ हुआ। एक को अंग्रेज़ी में 'अक्सिस' शक्ति कहा गया। यह शब्द मेरे मन में 'अक्सल' का नाद देता रहा, न जाने क्यूँ। दूसरी शक्ति थी 'अल्लिएद' शक्ति। हिंदू होने के नाते मैंने हमेशा तीन गुणों के बारे में तीन शक्तियों के रूप में संसार को जाना है। ज़ाहिर सी बात है की तीसरी शक्ति की सोच मुझे आज 'अक्सल' के विपरीत 'नक्सल' की ओर ले चली। विश्व युद्घ के अंत तक 'कोम्मुनिस्म' के विभिन्न रूप दिखाई दिए। आज के शो में माओवादी और लेनिनवादीयों को जोड़ दिया गया एक सूत्र में।

आज के शो की शायद यह अधूरी दास्ताँ थी। माओवादी और लेनिनवादी अलग है। माओ के प्रतिनिधि चीन में हैं, लेनिन के प्रतिनिधि अपनी लडाई रूस में लड़ रहे हैं। भारत या हिंदुस्तान में हम 'वादी' पर हमेशा लड़ते रहे हैं संवादी पर नहीं। चीन से लडाई सीमा पर करना है , उसके के लिए रूस से हथ्यार हम ले रहे हैं। इस में आदिवासियों से क्या बैर? यह लोग ज़मीन से जुड़े हैं, और ज़मीन की ज़रूरत हर किसी को है। सरकार के पक्ष में स्वपनजी बोले, पैसों और मीडिया के पक्ष में सागरिकाजी बोलीं और इनके ख़िलाफ़ गौतम नव्लाखाजी बोले। मेरा एक दोस्त था जिसका नाम था सुदीप चक्रबोर्टी जिसका हमनाम भी उस शो पर था और बिल्कुल सुदीप की तरह ही वह भी सब जानते हुए यह तय नही कर पाया की उसे किस तरफ़ जुखना है।

मेरी आखें उस बच्चे के लिए नम हैं जिसे निर्लज समाज ने कैमरा के सामने अपने पिता की मौत का बदला लेना का वादा करवाया। जब वह बच्चा यह पढेगा के सरे भारतीय मेरा भाई बहन हैं तो क्या वो अपने परिवार और देश के प्रति निर्मोहित नही होगा। हम मनोवाग्निक शिक्षण तब देते हैं जब की उसके पाठ हमने ख़ुद नही पढ़े।

९/११ की घटना के बाद अगर अमेरिका की सहनशीलता की परीक्षा हो रही है तो हो , इस में हमारे देश का एक सर भी कलम क्यूँ हो? चाहे वो सिपाही का हो या माओवादी का। आख़िर अमेरिका भी तो 'bodybags' के खिलाफ रहा है।

किसी के पक्ष में वाद कैसे करना यह हम चीन से शायद सीखें तो बेह्टर होगा. ९/११ के बाद किस तरह एक भी जान न गवाएंयह तो पता चले.
अमेरिका और चीन से क्या सीखना और उन्हें क्या सिखाना , इस अन्तर को जानने वाले व्यक्ति को विवेकी कहते हैं। गांधीजी विवेकी थे ,पर उन्हें मार दिया गया। गांधीजी से भी ऊपर उटकर रहने में सुदीप की भलाई है। हम अमेरिका से भी कुछ सीख सकते हैं। सहनशीलता शायद उसमे एक पाठ होगी, और बच्चों के प्रति संवेदना भी होगी। विवेकी और जिंदा होने की स्तितिः में सुदीप ब्रेक में सागरिका से कह पायेगा की -
ये इश्ख नहीं आसान, बस इतना समझ लीजिये, के आग का दरिया है और डूब के जाना है।

महाभारत का राष्ट्र कहीं महाराष्ट के चुनावों का रूपांतर तो नही?

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